तन के साथी, मन के साथी
मिलकर बोझ उठाएँगे
मेहनत मजदूरी को दोनों
अपना ध्येय बनाएँगे.
पत्थर गारा जो भी होगा
हाथ से हाथ बटाएँगे
एक हंसे दूजा मुस्काये
मिलकर बोझ उठाएँगे.
वादा किया जो इक दूजे से
मिलकर उसे निभाएँगे
जीवन पथ पर कदम मिलाकर
दोनों बढ़ते जाएँगे.
hemjyotsana parashar said,
नवम्बर 22, 2007 at 9:55 अपराह्न
sundar chitaran…
ramadwivedi said,
नवम्बर 23, 2007 at 2:04 अपराह्न
Devi ji,
sundar bhaav hai….badhaayi