Lokarpan-Apne hi Ghar Mein

18. Vimochan-Apne hi Ghar mein

On 17th Dec, 2015 Sri Sindhi Guru Sangat Sabha Association in Hyderabad organised a felicitation and book release function of Devi Nangrani’s translation story book titled ”Apne hi Ghar Mein” The book was released by Shri Shankardas Bolaki, himself a well known poet, the former president of Hyderabad Darbar.

On the occassion Devi Nagrani was presented with momento by The vice president Shri Jagdish Santdasani, and a shawl was presented by Shri Gurucharan Bhavnani and Smt Ganga Bhavnani. The evening was conducted by Smt Sunita Lulla, former principal of Sadhu Vaswani High School, and a well known poetess in her own right in Hindi,Sindhi.Urdu and English. Along with the book release a ”Kavya-Goshti ‘ too was organized. where a number of poets from the city presented their poems. some of them are Smt Vinita Sharma, Smt Elizabeth Kurian Mona, Smt Ratnakala Mishra, Shri Govind Akshay(edior-Golconda Darpan) ,Shri Durga Prasad ,Shri Chandra Kant Khandekar, Shri Kunj Bihari Gupta ,Smt Kumudbala Mukherji and Smt Sunita Lulla. The star of the evening Smt Devi Nagrani recited few of her Sindhi poems and Ghazals in her inimitable soft and soothing voice. The sindhis poetry presented was well welcomed and made the evening to remember for a long time to come. Among the sindhis there were Shri Jaikishan shri Prakash Bolaki , Mrs. Ashok Vaswani , Smt Karuna Matta, Shri Bhagwandas Thadani, Shri Govind Bachani and a few more from the city. The evening ended with snacks and tea.

काव्य संग्रह ‘एक थका हुआ सच’ का लोकार्पण

विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर एक दिवसीय वैश्विक हिन्दी संगोष्ठी एवं सम्मान समारोह

देवी नागरानी के अनूदित काव्य संग्रह ‘एक थका हुआ सच’ का लोकार्पण

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कॉलेज की प्रधानाचार्य श्रीमाइ मंजु निचानी दीप प्रज्वलित कराते हुए…

इस अवसर पर वैश्विक हिंदी सम्मलेनद्वारा हिन्दी भाषा व साहित्य के प्रचार और प्रसार के लिए इंग्लैंड में रह रहे यू. के. के कथाकार टेजेंद्र शर्मा ने अपने विचार रखे। अब प्रवासी सीधे वहाँ के समाज में घुल-मिल रहे हैं और अपनी स्थितियों को खुलकर कहानियों, कविताओं के माध्यम से अभिव्यक्त कर रहे हैं। यू. के. की साहित्यकार और लेखनीकी संपादकश्रीमती शैल अग्रवाल का सम्मान किया गया । यह सम्मान प्रत्येक वर्ष प्रवासी भारतीय रचनाकार को प्रदान किया जाता है । श्रीमती शैल अग्रवाल ने इस सम्मान के प्रति आभार व्यक्त करते हुए  कहा एक अकेले हिंदी और भारतीय भाषाओं की लड़ाई लड़ रहे डॉ. एम. एल. गुप्ता आदित्यको मैं यह कहने के लिए यहाँ आई हूँ कि इस कार्य में मैं भी उनके साथ हूँ ।उन्होंने  समर्थन के लिए अपने उद्गार, अनुभव एवं संवेदनाओं को उजागर किया तथा स्पष्ट किया कि मैंने जीवन में सदैव सहज बने रहने में ही जीवन की सार्थकता तलाशी हूँ, मैंने कभी राजनीति या चालाकी से काम नहीं लिया और यह सम्मान शायद उसी की बदौलत हो।

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(  देवी नागरानी (अमेरिका) की पुस्तक का विमोचन-चित्र में  प्रो. एस. पी दुबे, एम.एल.गुप्त आदित्य, प्रो. माधुरी छेड़ा, टेजेंद्र शर्मा, देवी नागरानी, डॉ. सुमन जैन, मंजुला देसाई, व शैल अग्रवाल)

इसी सत्र में डॉ. एम.एल.गुप्ता आदित्यने कहा कि हिंदी के वैश्विकरण का वास्तविक श्रेय सोशल मीडिया को जाता है,जिसके चलते विश्वभर में हिंदी का प्रसार हुआ है। सत्याग्रहसंस्था के अध्यक्ष माणिक मुंडे ने हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के प्रति चिंता जताते हुए भाषा के क्षरण की स्थिति से अवगत करवाया  और इसके लिए विभिन्न स्तरों पर कार्य किए जाने की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि सत्याग्रहवैश्विक हिंदी सम्मेलन के साथ मिलकर इस कार्य को आगे बढ़ाएगा ।कराची पाकिस्तान की मूल सिंधी भाषा की लेखिका अतिया दाऊद की कविताओं का श्रीमती देवी नागरानी द्वारा सिंधी भाषा से हिंदी में अनुवादित पुस्तक ‘एक थका हुआ सचका भी विमोचन इस कार्यक्रम में किया गया। इस सत्र का संचालन के. सी. महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. शीतलाप्रसाद दुबे ने किया।

 

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मौजूद हस्ताक्षर मेहमान रहे श्रीमती शील निगम, साहित्यकार शैल अग्रवाल ( इंग्लैंड), , कथाकार तजेन्द्र शर्मा, प्रो. एस. पी दुबे, एम.एल.गुप्त आदित्य, पत्रकार संजय सिंह, साहित्यकार माणिक मुंडे, ऑस्ट्रेलिया से आई विशेष अतिथि और प्रवासी साहित्य के वक्ता के रूप में श्रीमती शील निगम, एस.एन.डी.टी. विश्वविद्यालय की पूर्व आचार्या और हिन्दी विभागाध्यक्षा श्रीमती डॉ. माधुरी छेड़ा, कथाकार मधु अरोड़ा, श्रीमती शील निगम, के.जे. सोमैया महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. सतीश पाण्डेय, डॉ. उमेश शुक्ल, जी टी.वी. के रिपोर्टर संजय सिंह, माटुंगा-मुम्बई के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. प्रवीण चन्द्र बिष्ट, महुआचैनल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी राघवेश अस्थाना, इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स फॉर अफरमेटिव एक्शन के अध्यक्ष, सुनील ज़ो़ेडे  विशेष रूप से उपस्थित थे। आयोजन की सफलता का श्रेय के.सी.महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. शीतलाप्रसाद दुबे, हिंदी के महाप्रहरी डॉ. एम. एल. गुप्ता, पत्रकार अजीत कुमार राय, डॉ. कामिनी गुप्ता को जाता है ।

 

 

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Lokarpan-Barf Ki Garmaish

दो दिवसीय सेमिनार “सिंधी साहित्य में लेखिकाओं का किरदार” के दौरान देवी नागरानी के लघुकथा संग्रह का लोकार्पण …

Vimochan-Jaipur-Barf

राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद, नई दिल्ली की ओर से आयोजित दो दिवसीय सेमिनार “सिंधी साहित्य में लेखिकाओं का किरदार” 26-27 सितंबर 2015, माया इंटरनेशनल होटल जयपुर में सफलता पूर्ण रूप से सम्पन्न हुआ।
लेखिका देवी नागरानी के हिन्दी से सिंधी अनूदित लघुकथा संग्रह “ बर्फ की गरमाइश” का लोकार्पण शिक्षा राज्य मंत्री प्रो. वसुदेव देवनानी, प्रदेशाध्यक्ष श्री अशोक परनामी, और सांसद लोकसभा श्री रामचरण बोहरा ने किया और डॉ. एस. एस. अग्रवाल, राष्ट्रीय अध्यक्ष, इंडियन मेडिकल असोशिएशन, के हाथों सम्पन्न हुआ। साथ में मौजूद थे परिषद के निदेशक रवि टेकचंदानी, उपाध्यक्ष श्रीमति अरुणा जेठवानी, पूर्व अध्यक्ष व संयोजक डॉ. भगवान अटलानी, समन्वयक श्री रमेश गुरुसहानी।
सभाग्रह में मौजूद थे सिंधी समाज के दस्तावेजी हस्ताक्षर व परिषद के सम्माननीय हीरो ठाकुर, गोवर्धन शर्मा घायल, हरीश देवनानी, श्री कमलेश मूरजानी, श्रीमति अंजलि वाधवानी, डॉ. कमला गोकलानी, इन्दिरा शबनम, श्रीमति रशिम रामानी, लीला कृपलानी, वीणा शिरंगी, शलिनी सागर, डॉ. निर्मला आसनानी, श्रीमती रोमा जयसिंघानी, श्रीमति कौशल्या आहूजा, डॉ. संध्या कुंदनानी, श्रीमती आशा चाँद, डॉ। उषा सरस्वत, डॉ. विम्मी सदारंगानी, श्रीमती शोभा ला लचंदानी, श्रीमती बरखा खुशालानी, श्रीमती कमला भूटानी। व इस अधिवेशन को सफलता प्रदान करने वाले गण श्री रमेश गुरसहानी, श्रीमती अंजलि पंजवानी, संगीता गुरुसहानी, राजकुमारी करनानी, पूजा चाँदवानी, गीतांजलि आईलानी, कुमारी गायत्री, मोहन नानकानी, मनु रावतानी, हरीश करमचंदानी, अशोक वाधवानी, मुकेश इसरानी, सतीश भाटिया, पीयूशा लीलरामनी, हेमंत खटवानी, व अन्य सदस्य।
दो दिवसीय इस समारोह में सिन्धी साहित्य की लेखिकाओं के साहित्य में योगदान और नारी विमर्श में मोक्ष के द्वार खोने की संभावनाओं पर चर्चा हुई।

Roohani Raah-Vimochan In Poona-2014

photo14. Roohani

रूहानी रूह जा पांधीअड़ा’- काव्य संग्रह का विमोचन

दिनांक-रविवार 14 सितम्बर 2014 हिन्दी दिवस के शुभ अवसर पर सीता सिंधु भवन, सांताक्रूज, मुम्बई के एक भव्य समारोह में सुश्री देवी नागरानी के अनुदित काव्य संग्रह “‘रूहानी रूह जा पांधीअड़ा’ का लोकार्पण संपन्न हुआ। मंच पर सन्माननीय हस्ताक्षर जिनके हाथों विमोचन सम्पन्न हुआ वे रहे : श्रीमती पारु चावला, प्रमुख मेहमान श्री महेश चंदर , हमारे सिंधी के सिरमोर गुलोकार , सम्माननीय श्री जयराम रूपणी, हिंदवासी की प्रधान संपादिका शोभा ललचंदनी, देवी नगरानी और गीता बिंदरानी जी।

देवी नागरानी के इस अनुदित काव्य संग्रह में 50 अलग-अलग प्रान्तों के प्रबुध लेखकों की कविताओं का हिन्दी से सिंधी में अनुवाद हुआ है। अनेक प्रान्तों से स्थापित कवि व राष्ट्रकवि कुसुमाग्रज, विष्णु प्रभाकर, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, कुसुम अंसल…..! पुस्तक का स्वरूप देवनागरी लिपि में है, जो नव पीढ़ी को मधे-नज़र रखते हुए किया गया है।

पद्मश्री प्रो॰ राम पंजवानी जी की स्थापित यह संस्था ‘सीता सिंधु भवन’ पिछले 25 बरसों से सिद्धस्त साहित्यकार व सिंधी समाज के सम्माननीय दस्तावेज़ स्वर्गीय श्री ठाकुर चावला एवं उनकी पत्नी श्रीमति पारु चावला जी के निष्ठापूरक प्रयासों से चलाते आए। अब परंपरा बरकरार रखने के अथक प्रयास कर रहे हैं परिवार के सदस्य—उनकी सुपुत्रियाँ, नातिन अमृता। इस आंगन में सिन्धी साहित्य, संस्कृति एवं संगीत का संगम प्रत्यक्ष सामने आता है। यह उनके अनवरत अथक निष्ठा का नतीजा है जो आज हिन्द में भी सिन्ध की गूँज सुनाई देती है। संचालिका अमृता जी ने देवी जी के साहित्य सफ़र की बात करते हुए इस बात का खुलासा किया किया की अनुवाद सिन्ध और हिन्द के बीच का एक सेतु बनकर एक पुख्ता पल बन रहा है। भाषा की टहनियों पर प्रांत प्रांत के परिंदे आश्रय प रहे है, जो अपने आप में एक मुबारक क़दम है। यह देवी जी की अपनी लगन और मेहनत का प्रतिफल है।  जयहिंद

 

 

शाह अब्दुल लतीफ़ सेमिनार-दिल्ली में

 

Nazir Naaz, Janab Ghulam Ali Morai, Devi, Veena shirangi, Dr. Murlidhar jetley,

  Nazir Naaz, Janab Ghulam Ali Morai, Devi, Veena shirangi, Dr. Murlidhar jetley

शाह अब्दुल लतीफ़ सेमिनार-दिल्ली में सम्पन्न

16-17-18- दिसंबर -2014, दिल्ली में ‘मारुई’ संस्था की ओर से आयोजित शाह अब्दुल लतीफ़ पर छट्टा अंतराष्ट्रीय सेमिनार सम्पन्न हुआ। यह कार्यक्रम YMCA Tourist Hostel, ke  और ICC Conference Room में हुआ।  तारीख़ 16, दिसम्बर को उदघाटन समारोह के मुख्य मेहमान लोकसभा सदस्य सत्यापलसिंह, सादर भूतपूर्व एम्बेसेडर अर्जुन आसरानी एवं खास मेहमान मशहूर गायिका पद्मश्री शांति हीरानंद की उपस्थिती में हुआ। कार्यक्रम के आगाज में दीप प्रज्वलन व सरस्वती वंदना की परंपरा निभाई गई। उसी शाम संगीत से सजी महफिल में शाह के कलाम व अन्य सिंधी गीतों की बौछार से सभग्राह को अपनी आवाज़ से भावविभोर किया उमा लाला, पद्मा गिदवाणी, सरोजिनी कुमार, नीतू मटाई, रेने मिराजा, तेजा भाटिया, राजेन्द्रकुमार, लजा भाटिया व मनोहर करुणा, पंकज जेसवानी जी ने। प्रोग्राम का सिलसिलेवार संचालन किया वीणा शिरंगी व शालिनी सागर ने।Maruee-2

17 दिसम्बर को सिंध पाकिस्तान से आए डॉ. सुलेमान शेख़ व उनके साथ आए 14 लेखकों व शायरों ने इस सेमिनार में शिरकत की। उनमें मुख्य सम्मानित अतिथि रहे जनाब ग़ुलाम अली मोराई, एजाज़ अहमद कुरेशी, अमानुल्लाह शेख़, जावेद अहमद शेख़, डॉ. महरूलिनिसा लारिक, बेनिश साजिद, डॉ. मुमताज़ भुटो, नाज़िर नाज़, सुरेश कुमार वाधवानी, जन्नत जान, महक अली, आमिन लाखो, नसीम अख़्तर जलबानी सिंध से और भारत के हर प्रांत से शिरकत करने वालों की तादाद में थे दिल्ली अकादेमी के वाइस चेरमेन डॉ॰ मुरलीधर जेटले, इस कार्यक्रम की हर्ता-कर्ता वीना शिरंगी, शलिनी सागर, गोवेर्धन शर्मा घायल, भगवान अटलानी, अर्जुन चावला, खेमन मुलानी, लक्ष्मण दुबे, इंदिरा पूनवाला, देवी नागरानी, शोभा लालचंदनी, सिंधु बरखा खुशालानी, डॉ. विनोद आसूदनी, लछमनदास केसवानी, नारी लच्छवानी, बलू चोइथानी, भारती केवलरामानी, हरी हिमथानी, मोहन हिमथानी, रवि प्रकाश टेकचंदानी, शमीम अहमद।All Lekhak

सिंध से आए लेखकों ने शाह लतीफ के संदर्भ में अपने अपने प्रपत्र पेश किए। इस सत्र की अध्यक्षता की डॉ. सुलेमान शेख़ ने, ग़ुलाम नबी मोराई, एजाज़ अहमद कुरेशी, अर्जन चावला एवं भगवान अटलानी ने की।

दुपहर को भोजन के उपरांत सत्र में सिंध और हिन्द के लेखकों के पुस्तकों के विमोचन हुए, जिसमें वीना शिरंगी की दो पुस्तकों का विमोचन हुआ-Silent Path, और पखा ऐं पवार-डिठे मूँ डींह थ्या,  एवम देवी नागरानी की सिंध के कहानिकारों की कहानियों का हिन्दी में अनुदित संग्रह “पंद्रह सिंधी कहानियाँ” का विमोचन दिल्ली अकादेमी के वाइस चेरमेन डॉ॰ मुरलीधर जेटले, जनाब ग़ुलाम अली मोराई (CEO Mehraan T. V , Hyderabad Sindh) वीना शिरंगी, व देवी नागरानी, मोहतरमा नाज़िर नाज़ के हाथों से हुआ। उसी शाम एक काव्य गोष्टी का आयोजन भी हुआ, जहां काव्य पाठ की सरिता बहती रही।      DSCN5828

18 तारीख़ समर्पण की ओर बढ़ते हुए, कुछ प्रपत्र पढ़े गए और आए कविगन का सम्मान हुआ। गोवेर्धन शर्मा घायल ने बड़ी ही तेजस्वी ढंग से दो दिनों के कार्यक्रम की रूपरेखा को दारपेश किया। इस संस्था के सहकार में जुड़े सभी सदस्य मौजूद थे- रेनी मिराजा कुमार, राजेंद्र कुमार, मोहन गुरबानी, श्री मनोहर करणा, रमेश लाल, धीरज कुमार, डॉ. बलदेव आनंद कुमार, प्रो. सादिक़, प्रोमिला शर्मा, सीमा शिरंगी, प्रो. सान्या, श्रीमती सादिक़, शोभा शिरंगी, दीक्षा एवं सिद्धार्थ शिरंगी …अन्य…! कैमेरामेन राजकुमार रिझवानी एवं रतन पाहुजा ने अपने कैमरा से सभी कोणों से सभा में मौजूद हर एक अदीब को क़ैद करते हुए अपने कार्य को बखूबी अंजाम दिया। एक शानदार व यादगार सेमिनार जहाँ हिन्द-सिंध के सिंधी साहित्यकारों की मिली- जुली एक धारा संगठित रूप में साहित्य के सरोवर में घुल मिल गई। जयहिंद।

साहित्यकारों की काव्य गोष्टी…

Shaad B Group दिनांक मंगलवार 9 दिसम्बर २०१४ , मुंबई बांद्रा  में देवी नागरानी जी के निवास स्थान पर कर्नाटक से पधारे जाने माने अदीब शायर, अनुवादक एवं समीक्षक श्री शाद भागलकोटी जी के सम्मान में गोष्टी का आयोजन हुआ। वे इस शाम की महफिल के मुख्य महमान रहे। श्री महावीर प्रसाद अग्रवाल (नेवटिया) की अध्यक्षता, व मुख्य महमानों की हाज़िरी में काव्य सरिता, गीत ग़ज़लों, हास्य रस की मिली जुली महक से भरपूर गोष्टी सम्पन्न हुई, जिसके संचलन की डोर इस बार थामी कुमार जैन ने। एक सद्भावना भरे साहित्य का का माहौल रहा।

इस गोष्टी में शामिल अंजुमन संस्था के अध्यक्ष एवं प्रमुख शायर खन्ना मुजफ्फरपुरी, दोहकार वनमाली चतुर्वेदी, श्री महावीर प्रसाद अग्रवाल, ग़ज़ल को अलग ऊँचाइयाँ दे रही शायरा हेमा दासानी, उर्दू की ग़जालकारा नईमा इम्तियाज़, सुषमा सेनगुप्ता, नज़मा, कुमार जैन, दिनेश मिश्र बैसवारी एवं रहीम भाई शामिल रहे उन्होने अपनी रचनाओं का रसवादन करवाया। डॉ. संगीता सहजवानी ने इस बार अपनी लम्बी कविता का पाठ करके वाह वाह बटोरी। देवी जी ने एक गीत-ग़ज़ल का पाठ किया। कुमार जैन ने इस शाम को अपने खास अंदाज़ व शैली में संचालन किया और बेशुमार शेरों से फिज़ाओं को महका दिया। सुरमई शाम सभी रंगों को समेटते हुए सम्पन्न हुई। जयहिंद

विश्व हिन्दी सेवा सम्मान v “सिंधी कहानियाँ“ का लोकार्पण

दिनांक 15, 16 नवम्बर 2014 लखनऊ में अखिल भारतीय मंचीय कवि पीठ-उत्तर प्रदेश की ओर से आयोजित दो दिवसीय अंतराष्ट्रीय हिन्दी कविता समारोह-2014, विश्वेश्वरैया सभागार, लखनऊ में सम्पन्न हुआ। इन दो दिनों में उदघाटन, लोकार्पण, सम्मान एवं कवि सम्मेलन में देस-विदेस से पधारे कवि-गण, व भारत के अनेक शहरों से जाने माने कविवर, गज़लकार, साहित्यकार, पत्रकार भी उपस्थित रहे।L-Samman दिनांक 15, नवम्बर 2014 विश्व हिन्दी सेवा सम्मान से नवाज़ा गया   सम्माननीय अध्यक्ष श्री राम नाइक-माननीय राज्यपाल जी,  मुख्य अतिथि श्री शिवपाल सिंह यादव- मा॰ मंत्री, उ॰ प्र॰ सरकार, विशिष्ट अतिथि श्री राम नरेश यादव (पूर्व सचिव स ॰ वि॰ प॰ उ॰ प्र॰) सरस्वती शिखर अलंकरण-वरिष्ठ कवि श्री उदय प्रताप सिंह (लखनऊ), का॰ अध्यक्ष, उ॰ प्र॰ हिन्दी संस्थान, डॉ. जया वर्मा (नाटिंगम), मंचासीन अनुभूतियों की उपस्थिती में देवी नागरानी जी को विश्व हिन्दी सेवा सम्मान से नवाजा गया। अटलांटा की विदूषी साहित्यकारा डॉ. मृदुल कीर्ति की ओर से भी यह सम्मान देवी जी ने  विश्वेश्वरैया सभागार में ग्रहण किया।

Sindhi Kahaniyaan-Vimochan दिनांक 16 नवम्बर 2014  देवी नागरानी के कहानी-संग्रह “सिंधी कहानियाँ“ का लोकार्पण इस भव्य साहित्यिक समारोह के दौरान डॉ. देवी नागरानी जे के सिन्धी से हिन्दी में अनूदित कहानी-संग्रह “सिंधी कहानियाँ“ का लोकार्पण श्री माता प्रसाद पाण्डेय, मा॰ अध्यक्ष, उ. प्रदेश, श्रद्धेय श्री केशरी नाथ त्रिपाठी-माननीय राज्यपाल, पश्चिम बंगाल, डॉ. दिनेश शर्मा, महापौर लखनऊ, श्री सुधीर हलवासिया, डॉ. विष्णु सक्सेना, व समिति के संयोजक डॉ. नरेश कत्यायन के हाथों सम्पन्न हुआ।

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सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि हस्तियों की उपस्थिती में एक अंतराशतीय मुशाइरा भी संपन्न हुआ जिसमें भागीदारी ली -सर्वश्री उदय प्रताप सिंह(लखनऊ), डॉ. दाऊजी गुप्त(लखनऊ), डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र (देहारादून), डॉ. नरेश कात्यायन (लखनऊ), डॉ. देवी नागरानी (न्यू जर्सी), डॉ. विष्णु सक्सेना (सिकंदराराऊ), डॉ. हेमराज सुंदर (मरीशस), श्रीमति सविता देवी रघुनाथ (मारिशस), डॉ. गंगाप्रसाद शर्मा (चीन), पवन बाथम (कायमगंज), महावीर प्रसाद नेवटिया (मुंबई),  रेखा गुप्ता(चेन्नई),  डॉ. वेद पकश वटुक (कैलिफोर्निया), डॉ. मंजु मिश्रा, (कैलिफोर्निया), डॉ. शकुंतला बहादुर (कैलिफोर्निया), डॉ. जया वर्मा (नाटिंगम),फारूक सरल (लखीमपुर), प्रो. सुमेर सिंह शैलेश(सतना), डॉ.डंडा लखनवी(लखनऊ ), बनज कुमार बनज(जयपुर), श्री यशवंत सिंह शेखावत, मदनरजा मौर्य(लखनऊ), डॉ. अनिल चौबे (वारणासी), लताश्री( मथुरा), कमलेश शर्मा (इटावा), सुधीर निगम(कानपुर) अंतराष्ट्रीय हिन्दी कवि सम्मेलन में भागीदारी करने वाले कविगण थे डॉ. कमलेश द्विवेदी (कानपुर) ने काव्य पाठ का एवं संचालन का भार दोनों सत्रों में बहुत ही संजीदगी से निभाया। जयहिंद

समकालीन साहित्य की चुनौतियाँ

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समकालीन साहित्य की चुनौतियाँ : एक चर्चा

  • डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा इन चुनौतियों से जुड़े विविध पहलुओं पर विचार करने के लिए गत 30-31 अक्टूबर 2014 को कर्नाटक विश्वविद्यालय (धारवाड़), अयोध्या शोध संस्थान (अयोध्या) और साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था (उल्हासनगर) के संयुक्त तत्वावधान में धारवाड में ‘समकालीन हिंदी साहित्य की चुनौतियाँ’ विषयक द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया. उद्घाटन सत्र की मुख्य अतिथि अमेरिका से पधारी देवी नागरानी थीं. विशिष्ट अतिथियों में डॉ. विनय कुमार (हिंदी विभागाध्यक्ष, गया कॉलेज), डॉ. योगेंद्र प्रताप सिंह (निदेशक, अयोध्या शोध संस्थान, अयोध्या), डॉ. प्रदीप कुमार सिंह (सचिव, साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था, उल्हासनगर), डॉ. राम आह्लाद चौधरी (पूर्व अध्यक्ष, हिंदी विभाग, कोलकाता), डॉ. प्रभा भट्ट (अध्यक्ष, हिंदी विभाग, कर्नाटक विश्वविद्यालय), डॉ. एस. के. पवार (कर्नाटक विश्वविद्यालय) और डॉ. बी. एम. मद्री (कर्नाटक विश्वविद्यालय) शामिल थे. साहित्य को अंधेरा चीरने वाला प्रकाश बताते हुए डॉ. राम अह्लाद चौधरी ने कहा कि ‘आज प्रतिकूल परिस्थितियों को अनुकूल बनाने की चुनौती साहित्यकारों के समक्ष है. भारतीय साहित्य में इतिहास, दर्शन और परंपरा का संगम होता है. लेकिन आज के साहित्य में यह संगम सिकुड़ता जा रहा है. समाकीलन साहित्य के सामने एक और खतरा है अभिव्यक्ति का खतरा. गंभीरता और जिम्मेदारी पर आज प्रश्न चिह्न लग रहा है क्योंकि सही मायने में साहित्य के अंतर्गत लोकतंत्र का विस्तार नहीं हो रहा है. हाशियाकृत समाजों को केंद्र में लाना भी आज के साहित्य के समक्ष चुनौती का कार्य है. आलोचना के अंतर्गत भी गुटबाजी चल रही है. आलोचना पद्धति के मानदंड को बदलना आवश्यक है. साहित्य का कारपोरेटीकरण हो रहा है. सौंदर्य और प्रेम साहित्य के बुनियाद हैं. साहित्य को प्रवृत्तिमूलक दृष्टिकोण से देखना अनुचित है. जब तक उसके स्रोत तक नहीं पहुँचेंगे तब तक सिर्फ प्रवृत्ति के आगे चक्कर लगाते ही रहेंगे. साहित्य हाथ छुड़ाने का काम नहीं बल्कि हाथ थामने का काम करता है. एक दूसरे को जोड़ने काम करता है.’ डॉ. ऋषभदेव शर्मा (हैदराबाद) ने कहा कि समकालीन कविता की चुनौतियों को यदि समझना हो तो पंकज राग की कविता ‘यह भूमंडल की रात है’ को देखा जा सकता है क्योंकि भूमंडलीकरण/ भूमंडीकरण आज की सबसे बड़ी चुनौती है. उन्होंने कहा कि ‘कविता के समक्ष कुछ शाश्वत चुनौतियाँ हैं – विषय चयन से लेकर भाषा, पठनीयता और संप्रेषण तक. कविता का धर्म मनुष्यता को बचाना है. व्यक्ति को जारूक बनाना है. कवि को अपने समय से दो चार होते हुए चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. कविता को लोकमंगल, लोक रक्षण की भूमिका निभाने के लिए नए पैतरों को अपनाना होगा.’ उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि ‘आज के समय में पठनीयता की समस्या अर्थात संप्रेषण की समस्या है. यदि कवि लोक से जुड़ने की अपेक्षा लोकप्रियता से जुड़ जाय तो कविता में गंभीरता की क्षति होती है. समाज को टुकड़ों में बांटने वाली कविता नहीं चाहिए जबकि जोड़ने वाली कविता चाहिए. उपदेशों तथा निबंधों का अनुवाद कविता में नहीं करना चाहिए. जीवन की सच्ची अनुभूति की अभिव्यक्ति सरल शब्दों में होना नितांत आवश्यक है.’साहित्य को जीवन प्रतिक्रया मानते हुए डॉ. श्रीराम परिहार (खंडवा) ने कहा कि जीवन की जो भी चुनौतियाँ होंगी वे सभी कविता की चुनौतियाँ होंगी. जयशंकर प्रसाद ने भी कहा था कि काव्य जीवन की संकल्पनात्मक अभिव्यक्ति है. श्रीराम परिहार ने इस बात को रेखांकित किया कि भारत और विदेश में मूलभूत अंतर है. विदेश में संस्कृति, धर्म और दर्शन जीवन के हिस्से हैं. लेकिन भारत में धर्म व्यापक है. संस्कृति, समाज और दर्शन सभी धर्म के हिस्से हैं. जीवन में जो आचरण होता है वह कहीं न कहीं धर्म से जुड़ा हुआ होता है. अतः भारतीय साहित्य और कविता को इस दृष्टि से समझना अनिवार्य है.’ उन्होंने यह पीड़ा व्यक्त की कि हम ऐसे आलोचक पैदा नहीं कर पा रहे हैं जो साहित्य के सभी विधाओं को बराबर आदर दे सकें. उन्होंने इस बात को उदाहरणों से पुष्ट करते हुए कहा कि हमारे आलोचक एक रचना को सिर्फ एकांगी दृष्टि से आंकते रहते हैं. उसको समग्रता में नहीं देखते. बैंकों का राष्ट्रीयकरण, डंकल, पेटेंट आदि ने समाज में नवउदारवादी नीति को आगे बढ़ाया जिसके फलस्वरूप भूमंडलीकरण और बाजारवाद का प्रभाव बढ़ता गया. तीन ‘एम’ – ‘माइंड’, ‘मनी’ और ‘मसल’ पूरी तरह से सभी क्षेत्रों में हावी हो गए. साहित्य भी इनके प्रभाव से अछूता नहीं रहा. उन्होंने यह अपील की कि साहित्य को एकांगी दृष्टि से न देखें. उसको समग्रता में देखें और समझें.

 

  • संगोष्ठी के विभिन्न सत्रों में कविता, नाटक, उपन्यास और कहानी के समक्ष उपस्थित समकालीन चुनौतियों पर तो चर्चा हुई ही, एक सत्र में राम साहित्य की प्रासंगिकता पर भी विचार विमर्श हुआ जिससे यह बात उभरकर आई कि उत्तरआधुनिकता से आगे तरल आधुनिक होते जा रहे समकालीन विश्व में मनुष्यता, मानवीय संबंध और जीवन मूल्य खतरे में हैं और यह ख़तरा साम्राज्यवादी ताकतों तथा मुनाफाखोर बाजार से उपजी उपभोक्तावादी संस्कृति से है. इसका सामना करने के लिए रचनाकारों को यथार्थ का अंकन करने के साथ साथ मनुष्य और मनुष्य को जोड़ने वाले मूल्यों की स्थापना करने वाले साहित्य की रचना करनी होगी. यह बात भी उभरकर सामने आई कि रचनाकार जब तक अपने पाठक से सीधे संवाद स्थापित नहीं करेंगे और सामाजिक कार्यकर्ता की सक्रिय भूमिका में नहीं उभरेंगे तब तक साहित्य की प्रासंगिकता प्रश्नों के घेरे में रहेगी.
  • साहित्य की पठनीयता के संकट की चर्चा करते हुए डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा (हैदराबाद) ने कहा कि मुख्य चुनौती संप्रेषणीयता की चुनौती है. अर्थात काव्यभाषा की समस्या. जनभाषा का स्तर एक है तथा कविता की भाषा का स्तर एक. प्रायः यह माना जाता है कि साहित्यकार बनना हर किसी के बस की बात नहीं है. यह बात कवि और कविता पर भी लागू होती है. कविता लिखना हर किसी के लिए साध्य नहीं है. जिस तरह साहित्यकार को शब्द और भाषिक युक्तियों का चयन सतर्क होकर करना चाहिए उसी प्रकार कविता में भी शब्दों का सार्थक और सतर्क प्रयोग वांछित है. कवि को इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि उसे किस शब्दावली और भाषा का चयन करना होगा.
  • समकालीन रचनाकार एक ऐसे वातावरण में जी रहा है जहाँ यथार्थ को समग्र रूप में देखने के बजाय टुकड़ों में देखने का प्रचलन है. युगों तक हाशिए पर रहने के लिए विवश विविध समुदाय आज अपनी अस्मिता को रेखांकित कर रहे हैं जिससे विविध विमर्श सामने आए हैं. इस संदर्भ में डॉ. प्रतिभा मुदलियार (मैसूर) ने कहा कि ‘समकालीन हिंदी कविता में मानवाधिकारों से वंचित वर्ग ने अपनी अस्मिता कायम करने के लिए अभिव्यक्ति का शस्त्र अपनाया. हिंदी दलित विमर्श ने एक मुकाम हासिल की है. निर्मला पुतुल, ओमप्रकाश वाल्मीकि, तुलसीराम आदि साहित्यकार अपनी रचनाओं के माध्यम से भोगे हुए यथार्थ को अभिव्यक्त किया है. उनकी रचनाओं में उनकी वैचारिकता को रेखांकित किया जा सकता है. ये रचनाएँ अस्तित्व की लड़ाई की रचनाएँ हैं, विद्रोह और संघर्ष की रचनाएँ हैं. इनमें पीड़ा का रस है. घृणा के स्थान पर प्रेम को स्थापित करना की मुहीम है.’
  • उद्घाटन भाषण में देवी नागरानी ने कहा कि उन्हें भारत और अमेरिका में कोई विशेष अंतर नहीं दीखता क्योंकि जब कोई भारत से विदेश में जाते हैं तो वे सभ्यता, संस्कृति और संस्कार को भी अपने साँसों में बसाकर ले जाते हैं. एक हिंदुस्तानी जहाँ जहाँ खड़ा होता है वहाँ वहाँ एक छोटा सा हिंदुस्तान बसता है. उन्होंने भाषा और संस्कृति के बीच निहित संबंध को रेखांकित करते हुए कहा कि विदेशों में तो ‘हाय, बाय और सी यू लेटर’ की संस्कृति है जबकि हमारे भारत में विनम्रता से अभिवादन करने का रिवाज है. लेकिन आजकल यहाँ कुछ तथाकथित लोग विदेशी संस्कृति को अपनाकर हमारी संस्कृति की उपेक्षा कर रहे हैं जबकि विदेशों में बसे प्रवासी भारतीय अपनी भाषा और संस्कृति को बचाए रखने के लिए पुरजोर कोशिश कर रहे हैं. विश्वा (सं. रमेश जोशी), सौरभ (सं. अखिल मिश्रा), अनुभूति एवं अभिव्यक्ति (सं. पूर्णिमा वर्मन) आदि अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाएँ अंतर्जाल के माध्यम से हिंदी भाषा, साहित्य और संस्कृति को बचाए रखने में महती भूमिका निभा रही हैं. उन्होंने सबसे अपील की कि ‘हमें अपनी भाषा को, अपनी सभ्यता एवं संस्कृति को बचाए रखने के लिए कदम उठाना चाहिए चूँकि भाषा ही हमें विरासत में प्राप्त हुई है. अतः इसे सींचना और संजोना हमारा कर्तव्य है.’
  • पिछले डेढ़ सौ – दो सौ वर्षों में हमारे परिवेश और चिंतन में बड़े बदलाव आए हैं. वैज्ञानिक क्रांति के साथ आधुनिकता की आहटें सुनाई देने से लेकर उत्तरआधुनिकता और उससे जुड़े विमर्शों तक की इस यात्रा ने हमें आज जिस मुकाम पर ला खड़ा किया है वहाँ हम सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक मोर्चों पर नई नई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में देखें तो भी सब ओर काफी धुंधलका बरसता दिखाई देता है. इस धुंधलके में रचनाकार को अपनी राह तलाशने की बड़ी चुनौती का सामना है. समकाल की वे चुनौतियाँ उन स्थायी चुनौतियों के अतिरिक्त हैं जिनका सामना वस्तु, विचार, अभिव्यक्ति और शिल्प की खोज के स्तर पर किसी भी रचनाकार को करना होता है.
  • डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा (सह-संपादक ‘स्रवन्ति’)दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद – 50004
  • प्राध्यापक, उच्च शिक्षा और शोध संसथान,

साहित्य शिरोमणि सम्मान

0-31 आक्टोबर-2014, को कर्नाटक विश्वविद्यालय (धारवाड़), अयोध्या शोध संस्थान (अयोध्या) और साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था (उल्हासनगर) के संयुक्त तत्वावधान में धारवाड में ‘समकालीन हिंदी साहित्य की चुनौतियाँ’ विषयक द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया. कार्यक्रम के आगाज में दीप प्रज्वलन व सरस्वती वंदना की परंपरा संगीत विभाग के विद्यर्थियों द्वारा निभाई गई। पुष्प गुच्छ से महानुभूतियों का स्वागत किया गया। उदघाटन भाषण में श्रीमती देवी नागरानी जी ने विदेश में हिन्दी के उज्वल भविष्य की दिशा में हो रहे प्रयासों का विवरण दिया जो संस्थागत, व्यक्तिगत रूप में हिन्दी को अंतरार्ष्ट्रीय मंच पर स्थापित करने की पहल कर रहे हैं। कर्नाटक विश्वविध्यालय, धारवाड़, ने श्रीमती देवी नागरानी को “साहित्य शिरोमणि सम्मान” से सम्मानित किया।

उद्घाटन सत्र की मुख्य अतिथि अमेरिका से पधारी देवी नागरानी थीं. विशिष्ट अतिथियों में डॉ. विनय कुमार (हिंदी विभागाध्यक्ष, गया कॉलेज), डॉ. योगेंद्र प्रताप सिंह (निदेशक, अयोध्या शोध संस्थान, अयोध्या), डॉ. प्रदीप कुमार सिंह (सचिव, साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था, उल्हासनगर), डॉ. राम आह्लाद चौधरी (पूर्व अध्यक्ष, हिंदी विभाग, कोलकाता), डॉ. प्रभा भट्ट (अध्यक्ष, हिंदी विभाग, कर्नाटक विश्वविद्यालय), डॉ. एस. के. पवार (कर्नाटक विश्वविद्यालय) और डॉ. बी. एम. मद्री (कर्नाटक विश्वविद्यालय) शामिल थे.

उद्घाटन भाषण में देवी नागरानी ने कहा कि उन्हें भारत और अमेरिका में कोई विशेष अंतर नहीं दीखता क्योंकि जब कोई भारत से विदेश में जाते हैं तो वे सभ्यता, संस्कृति और संस्कार को भी अपने साँसों में बसाकर ले जाते हैं. एक हिंदुस्तानी जहाँ जहाँ खड़ा होता है वहाँ वहाँ एक छोटा सा हिंदुस्तान बसता है. उन्होंने भाषा और संस्कृति के बीच निहित संबंध को रेखांकित करते हुए कहा कि विदेशों में तो ‘हाय, बाय और सी यू लेटर’ की संस्कृति है जबकि हमारे भारत में विनम्रता से अभिवादन करने का रिवाज है. लेकिन आजकल यहाँ कुछ तथाकथित लोग विदेशी संस्कृति को अपनाकर हमारी संस्कृति की उपेक्षा कर रहे हैं जबकि विदेशों में बसे प्रवासी भारतीय अपनी भाषा और संस्कृति को बचाए रखने के लिए पुरजोर कोशिश कर रहे हैं.

Kim addressing

Kim addressing

महत्वपूर्ण बात यह की संक्षिप्त समय में भी समकालीन साहित्य पर प्रपत्र पढे गए व आलेख एक संग्रह -“समकालीन हिन्दी साहित्य की चुनौतियाँ” के रूप में आया जिसका लोकार्पन पहले सत्र में हुआ। 432 पन्नों का यह संदर्भ ग्रंथ जिसमें 122 प्रपत्र एक तार में पिरोकर सँजोये गए हैं , यह एक उपलब्धि है जिसका श्रेय जाता है प्रधान संपादक-डॉ. प्रदीप कुमार सिह , डॉ. वियनी कुमार, डॉ. भगवती प्रसाद उपाध्याय, डॉ. एस. के. पवार, प्रो. प्रभा भट्ट- , प्रो. बी. एम. मद्री जी व समस्त संपादकीय मण्डल को !

अध्यक्ष प्रो. चंद्रमा कणगलि की उपस्थिती में बीज वक्तव्य श्री राम अल्हाद (कलकता) ने प्रस्तुत किया। मंच पर उपस्थित शिरोमणि रहे डॉ. योगेंद्रप्रताप सिंह (अयोध्या), डॉ. विनय कुमार (गया) , डॉ. प्रदीप कुमार, (मुंबई), डॉ. एस. के. पवार (धारवाड़), प्रो. प्रभा भट्ट- अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, कर्नाटक विश्वविध्यालय, धारवाड़, प्रो. बी. एम. मद्री-निदेशक अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी, कर्नाटक विश्वविध्यालय, धारवाड़, संचालन को बखूबी निभाया डॉ. भगवती प्रसाद उपाध्याय ने।

साहित्य को अंधेरा चीरने वाला प्रकाश बताते हुए डॉ. राम अह्लाद चौधरी ने कहा कि ‘आज प्रतिकूल परिस्थितियों को अनुकूल बनाने की चुनौती साहित्यकारों के समक्ष है. भारतीय साहित्य में इतिहास, दर्शन और परंपरा का संगम होता है. लेकिन आज के साहित्य में यह संगम सिकुड़ता जा रहा है. समाकीलन साहित्य के सामने एक और खतरा है अभिव्यक्ति का खतरा. गंभीरता और जिम्मेदारी पर आज प्रश्न चिह्न लग रहा है क्योंकि सही मायने में साहित्य के अंतर्गत लोकतंत्र का विस्तार नहीं हो रहा है. हाशियाकृत समाजों को केंद्र में लाना भी आज के साहित्य के समक्ष चुनौती का कार्य है.

इस दो दिवसीय संगोष्ठी में छः सत्रों के अंतर्गत समकालीन साहित्य पर प्रपत्र पढे गए व अध्यक्षीय भाषण के दौरान चर्चा भी हुई। विषय रहे –समकालीन हिन्दी कविता, राम कथा की प्रासंगिता,  समकालीन हिन्दी नाटक, समकालीन उपन्यास, समकालीन कहानी साहित्य, समकालीन हिन्दी उपन्यास साहित्य, समकालीन हिन्दी कहानी।

इन विषयों पर अध्यक्षता के अंतरगत प्रपत्रवाचक समस्त भारत से शामिल रहे- प्रमुख वक्ता,  श्री राम परिहार (खंडवा, म. प्र.), डॉ. प्रतिभा मुदलियार (मैसूर), डॉ. ऋषभदेव शर्मा (हैदराबाद), डॉ. कविता रेगे (मुंबई), डॉ. भारतसिंह (बिहार), डॉ. आर. एस. सरज्जू (हैदराबाद), डॉ. उमा हेगड़े (शिमोगा) डॉ. एम.एस. हुलगूर, डॉ. मधुकर पाडवी (गुजरात), डॉ. अनिल सिंध (मुंबई), डॉ. नारायण (तिरुपति), डॉ. रोहितश्व शर्मा(गोवा), डॉ. अर्जुन चौहान (कोल्हापुर), डॉ. उत्तम भाई पटेल (सूरत), डॉ. चंद्रशेखर रेड्डी (तिरुपति), डॉ. को. जो. किम (दक्षिण कोरिया), प्रो. परिमाला अंबेडकर (गुलबर्गा), डॉ. बी. बी. ख्रोत (धारवाड़), डॉ. बाबू जोसफ (कोटयम)॥

समापन समारोह के दौरान विद्वानों का सम्मान किया गया –डॉ  एस. एस. चुलकिमठ,  डॉ. देवी नागरानी,  डॉ. कविता रेगे, डॉ. को. जो. किम, डॉ. आर. टी. भट्ट, डॉ. टी. वी. कट्टीमनी, डॉ. सुमंगला मुमिगट्टी, एवं श्री परसमल जैन ! इस वैभवपूर्ण एवं विशाल समारोह की संपन्नता सदा नींव का निर्माण बन कर याद रहेगी। जयहिंद

 

साहित्य व साहित्यकार–112 सेमिनार

31 Ag-2014  photo 3

दिनांक रविवार 31 अगस्त 2014 अखिल भारत सिंधी बोली एवं साहित्य प्रचार की ओर से 112 सेमिनार -“साहित्य व साहित्यकार” के तहत जानी मानी नामवर लेखिका व शायरा देवी नागरानी पर यह सेमिनार आयोजित हुआ। आयोजन शाम ५.३० बजे लोखंडवाला कॉम्प्लेक्स, अंधेरी पूर्व के लाल साईं मंदिर, मुंबई में  साहित्यकारों, कलाकारों व पत्रकारों, समाज सेवी शख्सियतों की उपस्थिती में सम्पन्न हुआ।

प्रचार सभा के माननीय निर्देशक व अध्यक्ष श्री टेकचंद मस्त जी ने पुष्प गुच्छ देकर देवी जी व शोभा जी का सम्मान किया, और सेमिनार का संचालन सभा की सचिव प्राध्यापिका नीता पंजवानी ने पुरज़ोर ढंग से करते हुए मंचासीन मेहमानों का परिचय दिया। जनरल सचिव डॉ. बिनीता नागपाल ने देवी नागरानी के जीवन के कुछ पहलुओं पर, साहित्य यात्रा, लेखन में उनके योगदान के बारे में कई कोण रौशन किए। और उन्हें सभा की ओर से मोमेंटों प्रदान, व शाल से सम्मानित किया। देवीजी ने ज़िंदगी को एक सफर, एक महाजाल, एक मुक्ति द्वार कहते हुए अपने मनोभावों को ज़ुबान दी, और कुछ ग़ज़लों का पाठ किया।

photo 4               Audience

इस मौके पर सभा की ओर से प्रिंट मीडिया के सशक्त हस्ती शोभा ललचंदानी को भी अवार्ड व रिवार्ड दोनों पेश करते हुए सम्मानित किया। उपस्थित श्रंखला में मौजूद रहे शोभा जी के सुपुत्र आनंद, बेटी अमृता, बहू व परिवार के और सदस्य! शोभा बधाई उपस्थित मेहमानों नें कलाकार मदन जुमानी, सोनू चौधरी, श्री बिहारी शैरी, होतचंद पाहुजा, व उनकी पत्नी, गोप गोलनी जी, वीणा ढिंगरेजा,  हरिचन्द ढिंगरेजा,  लाल खत्री, माला जीयनदानी , चंदा वीरानी, श्रोताओं में शामिल रहे, बंसी खूबचंदानी, भारती अवतरामानी, श्री निर्मल मूलचंदानी, श्यामानन्द चाँद वानी, ब्रिज मोहन, व पूनम ब्रिज मोहन, गीता बिंदरानी, व उर्दू के जाने माने शायर अनजाना और अनेक श्रोता। इस योगदान के लिए अखिल भारत सिंधी बोली एवं साहित्य प्रचार की टीम बधाई के पात्र है। उत्साह और प्रोत्साहन का श्रेय भी उनकी इस साधना स्वरूप निष्ठा को जाता है जो सिंधी साहित्यकारों, कलाकारों का सम्मान करते हुए आज 112 समारोह सम्पन्न कर रहे हैं। जयहिंद

 

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