यूं उसकी बेवफाई का मुझको
जून 17, 2008 at 4:06 अपराह्न (ग़ज़ल)
ग़ज़लः३९
यूं उसकी बेवफाई का मुझको गिला न था
इक मैं ही तो नहीं जिसे सब कुछ मिला ना था.
लिपटे हुए थे झूठ से कोई सच्चा न था
खोटे तमाम सिक्के थे, इक भी खरा न था.
उठता चला गया मेरी सोचों का कारवां
आकाश की तरफ कभी, वो यूं उड़ा न था.
माहौल था वही सदा, फि़तरत भी थी वही
मजबूर आदतों से था, आदम बुरा न था.
जिस दर्द को छुपा रखा मुस्कान के तले
बरसों में एक बार भी कम तो हुआ न था.
ढ़ोते रहे है बोझ सदा तेरा जिंदगी
जीने में लुत्फ़ क्यों कोई बाक़ी बचा न था.
कितने नकाब ओढ़ के ‘देवी’ दिये फरेब
जो बेनकाब कर सके वो आईना न था.
चराग़े -दिल/ ६५
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mehek said,
जून 17, 2008 at 5:28 अपराह्न
माहौल था वही सदा, फि़तरत भी थी वही
मजबूर आदतों से था, आदम बुरा न था.
जिस दर्द को छुपा रखा मुस्कान के तले
बरसों में एक बार भी कम तो हुआ न था.
bahut dino baad aapki gazal padhkar bahut achha laga devi ji,bahut khubsurat,wish ur well in health,tk cr sadar mehek
समीर लाल said,
जून 17, 2008 at 5:48 अपराह्न
बरसों में एक बार भी कम तो हुआ न था.
ढ़ोते रहे है बोझ सदा तेरा जिंदगी
=-बहुत उम्दा. वापस आ गईं आप?
abrar ahmad said,
जून 17, 2008 at 6:13 अपराह्न
बस इतना ही कहूंगा उम्दा। बहुत उम्दा।
Devi Nangrani said,
जून 26, 2008 at 2:31 अपराह्न
Tahe dil se shukraguzar hoon jo aapke ssneh ki patra ban paayi hoon.
ssneh
Devi
pappu suryavanshi said,
जून 27, 2008 at 1:13 अपराह्न
pyr me muje wo ruswa kar gaye. khush the akele lekin meri jindgi tnha kar gaye. jee leta me uske bina yaro lekin wo bedard dil ke tukde bhi sath le gaye.
rahul dev said,
जून 6, 2009 at 5:23 पूर्वाह्न
sach boloon majha aa gayaa yaar
sudhir said,
जून 10, 2009 at 5:02 पूर्वाह्न
mohabat me bewafai ki baate.